Kabir Das ke 10 Dohe hindi me arth sahit naitik shiksha par| कबीर दास के मशहूर 10 दोहे अर्थ सहित
कबीर दास जी के 10 दोहे अर्थ सहित? अगर आपका प्रश्न यह है तो कबीर दास के दोहे हिंदी में अर्थ के साथ प्रस्तुति आपके सम्मुख है। जिंदगी के उद्देश्य पर कबीर जी के ये दोहे जीवन के बारे में बहुत कुछ कहते हैं। नैतिक शिक्षा पर दोहे कबीर दास जी के जिनका अर्थ जीवन की सच्चाइयों के बिल्कुल करीब है। जो नैतिकता सिखाते हैं।
कबीर दास के 10 दोहे अर्थ सहित? जिंदगी के उद्देश्य पर कबीर के दोहे हिंदी में अर्थ
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कबीर दास के मशहूर दोहे जिनका अर्थ जीवन में प्रेरणा का स्त्रोत भी हो सकता है और सोचने को मजबूर भी कर सकता है। जिंदगी के उद्देश्य पर कबीर दास जी के दोहे जीवन से अवगत कराते हैं। साधु संत बेवजह कोरी बकवास नही करते उनकी बातों का एक भाव होता है। कबीर दास के मशहूर दोहे नैतिक शिक्षा पर दोहे हैं न कि निरुद्देश्य। दोहे का अर्थ केवल मतलब ही नहीं उसके पीछे भाव के साथ नैतिक होते हैं, चेतावनी दोहे आगाह भी करते हैं।
कबीर दास के 10 दोहे हिंदी में अर्थ सहित और भावार्थ सहित पढ़े और विश्लेषण करें। कबीर दास के बारे में जानकारी तो है ही कि वे उन महापुरूषों में हैं जो जीवन विचार अथवा जीवन धारा से रूबरू करवाते हैं। सही रास्ता दिखाते हैं।
नैतिक शिक्षा पर दोहे कबीर के दोहे साखी
कबीर दास के मशहूर दोहे में से यह दोहा "बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोई, जो मन देखा आपना मुझ से बुरा न कोय।" कितना सटीक है कि बुराई हम बाहर ही तलाशते हैं, अपने अंदर झांकते तक नही। जब झांकते हैं तो बुराई हमे अपने ही स्वभाव में नजर आती है। चलिए सरल अर्थ और भावार्थ के साथ कठिन शब्दो के अर्थ के साथ पढ़ते हैं, कबीर दास के दोहे हिंदी में dohe with meaning।
10 Best Dohe in hindi with meaning dohe by Kabir Das|कबीर दास जी के दोहे हिंदी में अर्थ सहित
1. जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥1॥
सरलार्थ:- साधु की जाति न पूछें, साधु से ज्ञान के बारे में पूछें। मोल भाव तलवार का करें, म्यान का नहीं।
भावार्थ:- कबीर दास जी के दोहा का भाव यह है कि जहां ज्ञान मिल रहा हो वहां भेदभाव जात पात से क्या अभिप्राय? हमे ज्ञान लेने से मतलब रखना चाहिए न कि यह देखना चाहिए की उसे दे कौन रहा है। यह बिल्कुल वैसे ही जैसे मोल तलवार का होता है म्यान तो बस उसे रखने के लिए है, उसके बारे में क्या विचारना।
नैतिक शिक्षा पर दोहे
2. तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँयन तर होय ।
कबहुँ उड़ आँखिन परे, पीर घनेरी होय।।2।।
सरलार्थ:- निंदा तो सूक्ष्म तिनके की भी न करे जो आपके पैरों के नीचे कुचला जाता है। कब आंख में गिर कर वह कष्ट दे दे क्या पता?
कबीर दास के दोहे:-
भावार्थ:- किसी को तुच्छ समझकर, यह मेरा क्या बिगाड़ लेगा, यह तो मेरे पैरो की धुल समान है, मै उसे जो चाहे कह सकता हूं, उसके साथ जैसा चाहे बर्ताव कर सकता हूं। परंतु रुकिए कबीर दास का दोहा हमे यही तो सुझाता है कि अनादर किसी हीन दिखने वाले का भी ना करे, पता नही कब वह आंख में पड़े तिनके की तरह कष्ट पहुंचा दे।
जीवन के उद्देश्य पर कबीर के दोहे
3. माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मनका डार दें, मन का मनका फेर।।3।।
सरलार्थ:- माला फेरते फेरते युग बीत गया, परंतु मन नहीं फिरा। हाथ में जो माला है उसे डाल दे (एक तरफ रख) और मन की माला फेरने की चेष्टा कर।
कबीर के दोहे भावार्थ सहित:-
भावार्थ:- दिखावटीपन की भक्ति से प्रभु नही मिलते। प्रभु मिलते हैं उन्हे अपने मन से, अपनी अंतरात्मा से स्मरण करने से। हाथ में माला फेर कर दिखाने से कुछ नही होगा होगा तभी जब अपने आपको प्रभु की ओर फेरोगे। मन में कुछ और है और हाथ की माला में प्रभु को ढूंढ रहे हैं, प्रभु को मन में बसाओ माला को एक तरफ करो।
कबीर दास के दोहे के कठिन शब्द के अर्थ:-
कर - हाथ
मनका - जपनी, माला
Dohe in hindi with meaning|गुरु के दोहे हिंदी में अर्थ के साथ दोहे साखी
4. गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय॥4॥
सरलार्थ:- गुरु और ईश्वर (गोविंद) दोनो खड़े हैं, किसके चरण पहले स्पर्श करूं? मैं तो गुरु पर ही न्यौछावर हूं उन्होंने ही तो ईश्वर को जनवाया(बताया) है।
भावार्थ:- असमंजस की परिस्थिति जब गुरु और भगवान सामने खड़े हों तो किसकी वंदना पहले करें? इस विचार के आते ही हमे प्रथम स्थान उन्हे देना चाहिए जिन्होंने हमे वहां पहुंचाया जहां हमे पहुंचना था। अर्थात हम जिस किसी विषय वस्तु के लिए संघर्षशील होते हैं और उसे पा जाते हैं। तो उसे पाने में जिन्होंने हमारा मार्गदर्शन किया है उच्च स्थान उनका है न कि उस विषय वस्तु का।
कबीर के दोहे गुरु पर
5. बलिहारी गुरु आपनो, घड़ी-घड़ी सौ सौ बार ।
मानुष से देवत किया करत न लागी बार ॥ 5 ॥
सरलार्थ:- मै तो अपने गुरु पर पूरी तरह हर क्षण सैंकड़ो - सैंकड़ो बार न्यौछावर हूं, जिन्होंने मनुष्य से देवता बना दिया और ऐसा करते उन्हे अधिक समय भी नही लगा।
कबीर के दोहे:-
भावार्थ:- कबीर दास के दोहे का भाव है कि मनुष्य के जीवन में गुरु का बहुत अधिक महत्व होता है। गुरु ही है जो मनुष्य को मानव से देवता अर्थात अंधकार (अज्ञान) से प्रकाश (ज्ञान) की ओर ले जाता है। गुरु ही हैं जो हमे एक सुदृढ़ मानव, सज्जन पुरुष बनाते हैं। इसलिए उनकी महिमा को नजरंदाज ना करें।
चेतावनी दोहे कबीर के दोहे हिंदी में अर्थ
6. सुख में सुमिरन ना किया, दु:ख में किया याद ।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद।।6।।
सरलार्थ:- सुख में प्रभु को भूले रहे, दुख हुआ तो वे याद आए। ही कबीरा अब फरियाद कौन सुनेगा।
भावार्थ:- कबीर दास का यह दोहा हमे सूझा रहा है कि परिस्थितियां कैसी भी चाहे सुख की हों अथवा दुख की, अहम को त्याग कर प्रभु का स्मरण सदैव ही रखें। वरना कोई विपरीत परिस्थिति में पुकार सुनने वाला होगा यह भी उम्मीद गलत है।
Dohe meaning in hindi|दोहे हिंदी में अर्थ के साथ नैतिक शिक्षा पर दोहे
7. साईं इतना दीजिये, जा में कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय।।7।।
सरलार्थ:- हे भगवान मुझे इतना ही दीजिए जिसमें मैं और मेरा परिवार आराम से रह पाएं। साथ साथ कुटुंब भी खा ले और किसी साधु की मदद की जा सके।
भावार्थ:- कबीर दास के दोहे का भाव यह है कि हे प्रभु मैं अधिक की मांग नही करता परंतु इतना तो होना ही चाहिए जिससे मैं अपने परिवार का भरण पोषण आराम से कर सकूं। मगर प्रभु मेरी एक विनती और स्वीकार करें कि मुझे वह नियत भी प्रदान करे जिससे मैं साधु संतों की सेवा भी कर सकूं।
कबीर अमृतवाणी लिरिक्स (कबीर दोहे लिरिक्स)
8. लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट।।8।।
सरलार्थ:- राम नाम की लूट चल रही है, किसी को लूटना है तो लूट लो। एक बार प्राण पखेरू उड़ जाएंगे फिर पछताते रह जाओगे।
भावार्थ:- कबीर दास के दोहे से अभिप्राय है कि हे मानव भगवान प्रभु राम को सुमरने में क्या कोई कीमत लगती है, यह तो मुफ्त है। इसे नजरंदाज ना करो कदापि अंत समय में जब प्रभु को सुमिरोगे तब तक प्राण त्यागने का समय आ चुका होगा।
जीवन उद्देश्य पर कबीर जी के दोहे
9. दुख में सुमरिन सब करे, सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमरिन करे, दुख काहे को होय।।9।।
सरलार्थ:- दुख में भगवान याद आते हैं, सुख में नही। यदि सुख में भी प्रभु को याद किया जाए तो दुख आए ही क्यों?
भावार्थ:- पता नही क्यों? विपत्ति आने पर ही प्रभु भक्ति याद आती है लोगो को। जबकि प्रभु को याद करने कोई नुकसान तो नही होता। उन्हे तो चाहें तो सुखी समय में भी स्मरण किया जा सकता है, अगर ऐसा करें तो कोई आफत आए ही ना।
कबीर के दोहे प्रेम पर
10. जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ तहाँ पाप ।
जहाँ क्रोध तहाँ पाप है, जहाँ क्षमा तहाँ आप।।10।।
सरालार्थ:- जहां दया है वहां धर्म है, पाप का मुख्य कारण लालच है। जहां क्रोध है वहां भी पाप ही है, परंतु क्षमा करना बड़प्पन की निशानी है।
भावार्थ:- कबीर दास का दोहा स्पष्ट बता रहा है कि धर्म हमे दया सिखाता है। बेवजह का लालच हमे पाप की गर्त की ओर धकेलता है। किसी पर क्रोध भी हमे पापी होने का ही बोध भी कराएगा और समाज भी यही नाम देगा। जबकि बड़प्पन तो क्षमा कर देने में है। क्षमादान आपको एक सज्जन व्यक्तित्व की पहचान दिलाता है।
उम्मीद है कबीर दास जी के दोहे हिंदी में अर्थ सहित आपको पसंद आए होंगे। कुछ गलत हो तो हमे कमेंट करके बता सकते हैं और साथ ही साथ अपनी सलाह भी साझा करें कि आपकी पसंद क्या है? हमे आपकी सलाह का इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
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