Shree Hanuman chalisa lyrics with hindi meaning

Shree Hanuman chalisa lyrics with hindi meaning | श्री हनुमान चालीसा अर्थ सहित 

Shree-Hanuman-chalisa-lyrics-with-hindi-meaning
Shree-Hanuman-chalisa-lyrics-with-hindi-meaning

Shree Hanuman chalisa Lyrics Arth sahit प्रस्तुत है। क्या आप भी श्री हनुमान चालीसा पढ़ते हैं? अगर हां! तो क्या आप हनुमान चालीसा meaning जानते हैं? अगर नहीं तो लीजिए आपके सम्मुख प्रस्तुत है हनुमान चालीसा विस्तार से अर्थ सहित। सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी बताने वाले हनुमान चालीसा के उस दोहे का विवरण विस्तार से वर्णित है। आपके लिए बहुत ही सरल भाषा में श्री Hanuman chalisa meaning hindi में है जिसे समझने में कठिनाई नहीं होगी।

Hanuman chalisa lyrics meaning in hindi|श्री हनुमान चालीसा हिंदी में विस्तारित वर्णन

हनुमान चालीसा का अर्थ क्या है? अगर आपके मन में प्रश्न है तो उसका निवारण हेतु श्री हनुमान चालीसा हिंदी में अर्थ है, पढ़िए। साथ ही साथ अगर आपको श्री गुरु चरण सरोज रज दोहे का अर्थ भी मिलेगा। और हनुमान चालीसा का जप करने के बाद दोहा पवन तनय संकट हरण मंगल मूर्ति रूप का भी सरल अर्थ उपलब्ध है। 
अष्ट सिद्धि नौ निधि में वो आठ विधियां कौन सी हैं इसकी भी जानकारी आपको मिलेगी, बने रहें Hanuman chalisa lyrics विवरण के साथ।  

हनुमान चालीसा में वह दोहा कौन सा है जिसमें पृथ्वी और सूर्य की दूरी का वर्णन किया गया है? 

हनुमान चालीसा का वह दोहा जिसमें सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी का वर्णन है, युग सहस्त्र योजन पर भानु लील्यो तांहि मधूर फल जानू। कैसे है? इसका विस्तार से विवरण आपको नीचे मिलेगा। उससे पहले विस्तार से हनुमान चालीसा अर्थ सहित हिंदी में पढ़े। 

Shree Hanuman chalisa lyrics| श्री हनुमान चालीसा लिरिक्स अर्थ सहित 

श्री गुरु चरण सरोज रज निजमन मुकुरु सुधारि।
बरनवउँ रघुबर बिमल जसु जो दायक फल चारि।।
 बुध्दीहीन तनु जानिके सुमिरो पवन कुमार। 
बल बुधि विद्या देहु मोहिं हरहु कलेश विकार।।

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर जय कपीस तिंहु लोक उजागर।।१।। 
सरलार्थ:- हे ज्ञान और गुणों के सागर हनुमान जी आपकी तीनों लोको में जय जयकार है। 
राम दूत अतुलित बल धामा अंजनी पुत्र पवन सुत नामा।।२।। 
सरलार्थ:- रामदूत, अंजनी पुत्र, पवनपुत्र अतुलनीय शक्ति के धाम आदि नामों से आप जाने जाते हैं। 
महावीर विक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी।।३।। 
सरलार्थ:-हे महान वीर पराक्रम के प्रयाय बजरंग बली आप मूर्खता से सद्बुद्धि की ओर ले जाने वाले हैं, आप सुमति के साथी हैं। 
कंचन वरन विराज सुबेसा कानन कुडल कुंचित केशा।।४।। 
सरलार्थ:-स्वर्ण के विपरीत आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभीत हैं । 
हाथ वज्र औ ध्वजा विराजै कांधे मूंज जनेऊ साजै।।५।। 
सरलार्थ:- आपके हाथमें बज्र और ध्वजा हैं तथा कांधे पर मूंज जनेऊ की शोभा है। 
शंकर सुवन केसरी नंदन। तेज प्रताप महा जग बन्दन॥६।। 
सरलार्थ:- हे शंकर के अवतार, हे केशरी-नन्दन, आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर में वन्दना होती है। 
विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।७।। 
सरलार्थ:- आप प्रकाण्ड विद्यानिधान हैं, गुणवान और अत्यंत कार्यकुशल होकर श्रीराम-काज करने के लिए उत्सुक रहतें हैं । 
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।८।। 
सरलार्थ:- आप प्रभु श्रीराम की कथा कथन और उनके चरित्र को सुनने आनंदित होते हैं। श्रीराम सीता और लक्ष्मण के मन में आप बसते हैं। 
सुक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा विकट रूप धरि लंक जरावा।।९।। 
सरलार्थ:- अपना सूक्ष्म रूप बनाकर आपने माता सीता को दिखाया और फिर विकट रूप धरा और लंका को जलाया। 
भीम रूप धरि असुर संहारे रामचंद्र जी के काज सँवारे।।१०।। 
सरलार्थ:- भयंकर रूप धरकर राक्षसों का संहार किया और सरलता पूर्वक श्रीराम के कार्यों को संवारा। 
लाये सजीवन लखन जियाऐ श्री रघुवीर हरषि उर लाये।।११।। 
सरलार्थ:- संजीवनी बूटी लाकर आपने लक्ष्मण को सजीव किया तो श्रीराम ने हर्षित होकर आपको अपनी छाती से लगा लिया। 
रघुपति कीन्हि बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरत ही सम भाई।।१२।। 
सरलार्थ:- रघुपति श्रीराम ने आपकी प्रशंसा में कहा कि तुम मुझे अपने प्रिय भरत भाई की ही तरह प्रिय हो। 
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं अश कहिं श्रीपति कंठ लगावें।।१३।। 
सरलार्थ:- मेरा संपूर्ण शरीर तुम्हारे यश का ही हजारों गुणगान कर रहा है, ऐसा कहकर प्रभु श्रीराम ने आपको गले लगा लिया। 
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा।।१४।। 
सरलार्थ:- श्रीसनक, श्रीसनातन, श्रीसनन्दन, श्रीसनत्कुमार आदि मुनि, ब्रम्हा आदि देवतागण, नारदजी, सरस्वतीजी, शेषनागजी आदि आपके यशको पूरी तरह वर्णन करने में असमर्थ हैं। 
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते कवि कोविंद कहि सके कहाँ ते।।१५।। 
सरलार्थ:- यम, कुबेर ही क्या दिशाओं के अंतिम पड़ाव तक कोई कवि, कोई, विद्वान, कोई पांडित्य प्राप्ता आपके गुणगान को कहां तक वर्णन कर सकता है। 
तुम उपकार सुग्रीव ही कीन्हा राम मिलाय राज पद दीन्हा।।१६।। 
सरलार्थ:- तुमने सुग्रीव पर उपकार किया, उन्हे श्रीराम से मिलाया और उन्हें राज्यपति बनाया। 
तुम्हारो मंत्र विभीषण माना लंकेश्वर भये सब जग जाना।।१७।। 
सरलार्थ:- राक्षस राज में होते हुए विभीषण ने आपका अनुसरण किया और फलस्वरूप उन्हें लंकापति बनाया जिससे वे संसार में जाने गए। 
युग शहस्त्र योजन पर भानु लील्यो ताहिं मधुर फल जानु।।१८।। 
सरलार्थ:- हजारों युगों योजन दूर सूर्य को एक फल समझ कर अपने उसे मुंह में भर लिया। 
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं जलधि लांघि गए अचरज नाहिं।।१९।। 
सरलार्थ:- यह आश्चर्य की बात नही है कि अपने प्रभु श्रीराम की अंगूठी मुंह में लेकर आप समुद्र लांघ गए। 
दुर्गमम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।२०।। 
सरलार्थ:- जग के जितने भी कठिन से कठिन काम हैं, वे सभी आपकी कृपा से सहज और सुलभ हो जाते हैं। 
राम दुआरे  तुम  रखवारे  होत न आज्ञा  बिनु पैसारे।।२१।। 
सरलार्थ:- श्री रामचंद्रजी के द्वार के आप रखवाले हैं , जिसमें आपकी आज्ञा के बिना किसी को प्रवेश नहीं मिल सकता । अभिप्राय है कि बिना हनुमान जी को प्रसन्न किये राम जी को नहीं पाया जा सकता। 
सब सुख रहे तुम्हारी शरणा तुम रच्छक काहु को डरना।।२२।। 
सरलार्थ:- हे हनुमंत आपकी शरण में ऐसा कौन सा सुख है जो नही है, आपके होते हुए मुझे भयभीत होने की जरूरत ही नही है। 
आपन तेज संभारो आपै तीनों लोक हांक ते कांपें।।२३।। 
सरलार्थ:- आपके बल को आपके अलावा कोई नहीं संभाल सकता। आपकी एक हुंकार से तीनों लोक कांपने लगते हैं। 
भूत पिशाच निकट नहीं आंवै महावीर जब नाम सुनावै।।२४।। 
सरलार्थ:- आपके स्मरण मात्र से और आपका नाम लेने से भूत पिशाच पास भी नहीं आते। 
नासै रोग हरे सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बलबीरा।।२५।। 
सरलार्थ:- हे हनुमंत आपके नाम का जप करने से हर तरह के रोग नष्ट हो जाते हैं। 
संकट से हनुमान छुड़ावें मन कर्म वचन ध्यान जब लावैं।।२६।। 
सरलार्थ:- आपका ध्यान मन में, कर्म में करने से कष्ट दूर भागते हैं, और अगर कोई कष्ट हो तो उसका निवारण संभव हो जाता है। 
सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा।।२७।। 
सरलार्थ:- तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सभी कार्यों को आपने सहज रूप में सफल कर दिया। 
और मनोरथ जो कोई लावैं सोई अमित जीवन फल पावैं।।२८।। 
सरलार्थ:- जिस पर आपकी कृपा हो जाती है, वह कोई भी अभिलाषा करें तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन में कोई सीमा नहीं होती। 
चारों युग प्रताप तुम्हारा है प्रसिध्द  जगत उजियारा ।।२९।। 
सरलार्थ:- सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग इन चारो युगों में आपका यश फैला हुआ है, जगत में आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है। 
साधु संत के तुम रखवारे असुर निकंदन राम दुलारे।।३०।। 
सरलार्थ:- साधु संतों के आप रखवाले हैं, असुरों के संहारक, हे हनुमान आप श्रीराम के दुलारे हैं। 
अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता अस् बर दीन जानकी माता।।३१।। 
सरलार्थ:- आपको माताश्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है। 
राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो  रघुपति के दासा ।।३२।। 
सरलार्थ:- आप निरन्तर श्री रघुनाथजी की शरण में रहते हैं, जिससे आपके पास वृद्धावस्था और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम-नाम रुपी औषधि है । 
तुम्हरे भजन राम को पावैं जनम जनम के दुःख बिसरावैं।।३३।। 
सरलार्थ:- आपके भजन श्रीराम को पाने में सहायक हैं, और हर जन्म के कष्ट, दुख दूर करने वाले हैं। 
अंतकाल रघुवर पुरजाई जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ।।३४।। 
सरलार्थ:- अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलाएंगे। 
और देवता चित्त न धरई हनुमत से हि सब्र सुख करई।।३५।। 
सरलार्थ:- हे हनुमान जी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नहीं रहती। 
संकट कटे मिटै सब पीरा जब सुमिरै हनुमत बलबीरा।।३६।। 
सरलार्थ:- हे वीर हनुमानजी ! जो आपका स्मरण करता है, उसके सब संकट कट जाते हैं और सब पीडा मिट जाती हैं। 
जय जय जय हनुमान गोसांई कृपा करो गुरुदेव की नाईं।।३७।। 
सरलार्थ:- हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझ पर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए। 
जो सत् बार पाठ कर जोई छुटहिं बन्दी महासुख होई।।३८।। 
सरलार्थ:- जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बंधनों से छूट जाएगा और उसे परमानन्द मिलेगा। 
जो कोई पढें हनुमान चालीसा होई सिद्धि साखी गौरीशा।।३९।। 
सरलार्थ:- भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है, कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी। 
तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय मा डेरा ।।४०।। 
सरलार्थ:- हेे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है। इसलिए आप उसके हृदय में निवास कीजिए। 
 -:-:-
पवन तनय संकट हरन मंगलमूर्ति रूप।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ।।
सरलार्थ:- हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनंद मंगलों के स्वरूप हैं। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए।  

हनुमान जी को माता सीता से वरदान प्राप्त आठ सिद्धियां कौन सी हैं?

हनुमान जी को माताश्री जानकी से  वरदान प्राप्त आठ सिद्धियां:– 
  1. अणिमा- जिससे साधक किसी को दिखाई नहीं पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ में प्रवेश कर जाता है। 
  2. महिमा- जिसमें योगी अपने को बहुत बड़ा बना देता है। 
  3. गरिमा- जिससे साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है। 
  4. लघिमा- जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन जाता है। 
  5. प्राप्ति- जिससे इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती है।
  6. प्राकाम्य- जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी में समा सकता है, आकाश में उड़ सकता है। 
  7. ईशित्व- जिससे सब पर शासन का सामर्थ्य हो जाता है। 
  8. वशित्व- जिससे दूसरों को वश में किया जाता है। 
श्री हनुमान अष्टक अर्थ सहित:- बाल समय रवि भक्षी लियो तब तिन्हू लोक भयो अंधियारों

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ