Kabir dohe meaning Mukhda kya dekhe darpan me bhajan lyrics

Kabir dohe meaning Mukhda kya dekhe darpan me bhajan lyrics 

Kabir dohe meaning Mukhda kya dekhe darpan mein lyrics को ध्यान देकर पढ़ा अथवा सुना जाए तो इस Bhajan Lyrics बहुत ही गहरी बात कहता है। मुखड़ा क्या देखे दर्पण में  तेरे दया धर्म नही मन में अर्थात मात्र चेहरे से मानव की सुंदरता नही अपितु दूसरो के प्रति अपने मन में प्रेम, सौहार्द भी होना अनिवार्य है। 

Kabir dohe meaning जीवन के लिए बेहद प्रेरणा दायक होने के साथ साथ मानव को आइना भी दिखाते हैं। Bhajan lyrics कोई भी अध्यात्म की ओर मुंह फेर ही देता है मानव का। हालांकि विज्ञान भी सत्य है परंतु विज्ञान का पहला कदम अध्यात्म से ही शुरू होता है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता। चलिए मुखड़ा क्या देखें दर्पण में bhajan lyrics की व्याख्या करते हैं और समझते हैं। सबसे पहले Mukhda kya dekhe darpan mein lyrics से रूबरू होते हैं।

Kabir dohe meaning Mukhda kya dekhe darpan mein bhajan lyrics  

Mukhda kya dekhe darpan mein lyrics hindi

मुखड़ा क्या देखे दर्पण में

तेरे दया धर्म नहीं मन में

मुखड़ा क्या देखे दर्पण मे


कागज की एक नाव बनाई छोड़ी गहरे जल में

धर्मी कर्मी पार उतर गया पापी डूबे जल में

मुखड़ा क्या देखे दर्पण मे.....


खाच खाच कर साफा बांधे तेल लगावे जुल्फन में

इण ताली पर घास उगेला धेन चरेली बन मे

मुखड़ा क्या देखे दर्पण मे......


आम की डाली कोयल राजी सुआ राजी बन में,

घरवाली तो घर में राजी संत राजी बन में,

मुखड़ा क्या देखे दर्पण मे.....


मोटा मोटा कड़ा पहने कान बिंधावे तन में

इण काया री माटी होवेला सो सी बीच आंगन में

मुखड़ा क्या देखे दर्पण मे.......


कोडी कोडी माया जोड़ी जोड़ रखी बर्तन में

कहत कबीर सुनो भाई साधो रहेगी मन री मन में

मुखड़ा क्या देखे दर्पण मे.....

Kabir dohe meaning Mukhda kya dekhe darpan mein lyrics

पहले पद का तो आप समझ ही रहे हैं। दूसरे पद में कबीर दास जी के दोहे का मतलब है कि कागज की नाव अर्थात हमारा जीवन जो कागज की नाव की भांति है, जैसे कागज की नाव का पानी में कोई औचित्य नहीं होता, वह कब गलकर पानी में बह जाए डूब जाए पता नही। वैसे ही हमारा जीवन है कठिनाइयों से परिपूर्ण और साथ पानी के बुलबुले की भांति कब समाप्त हो जाए पता नही। गहरे जल में, अर्थात संसार में, जिसका कोई एक ही मालिक सदैव नही रहता। साथ सांसारिक सत्यता जिसे जानते सब हैं परंतु नजरंदाज करते हैं। परंतु फिर भी  कर्म करने वाले और धर्म में आस्था रखने वाले पार उतर जाते हैं। लोभी, कामी आदि बीच लहर में हिचकोले खाते रहते हैं।

Kabir dohe meaning में तीसरे पद का सार है कि मानव स्वयं को साबित करने हेतू बहुत कुछ करता है जैसे खाच खाच के साफा बांधे, मतलब अपनी पगड़ी को पूरी तन्मयता से बांधते हैं। अपने बालों में खुशबूदार तेल भी लगाते हैं। परंतु सच्चाई तो यह कि इन ताली अर्थात इन छोटे छोटे तालाब की बिसात ही क्या है जब, धेन मतलब नदी, चरेली मतलब चरती हैं वन में। कबीर के दोहे का मतलब है कि प्रकृति के आगे किसी की नही चलती तालाब सुख जाते हैं, नदिया तक सुख जाती हैं। 

इसके अलावा धेन चरेली बन में से  अभिप्राय नदी की बाढ़ से भी है जब नदी अपने पानी से जंगल को घेर लेती हैं। तो तेरे खींच खींच के साफा बांधने से वजूद कहां बरकरार रहने वाला है।

Kabir dohe meaning के अगले पद का मतलब है कि जिस प्रकार कोयल को आम की डाली पर बैठना सुहाता है और सुआ अर्थात तोता को जंगल में विचरण कारण अच्छा लगता है। नारी अपने घर में खुश रहती है। उसी प्रकार साधु संतों को तो जंगल का एकांत स्थान ही अधिक प्रिय है।

हाथों में मोटा मोटा कड़ा और कानों को छेदवाने का क्या लाभ है? कबीर dohe meaning में अगला पद यही कहता है। जब इस शरीर को अंत में मिट्टी ही होना है और घर के आंगन में पटक देना है। शरीर जब मिट्टी हो जायेगा तो उसे खाट पर भी नही रखेंगे।

Kabir dohe meaning में अगला पद कहता है, कोढी कोढी अर्थात टूटकर या बुरी तरह पीछे पड़कर धन का संग्रह किया ताउम्र। परंतु उसे जोड़े रखा उसका लाभ नहीं उठाया, उसका रस्सवादन नही किया। अंत में कबीर कहते हैं अब तू सोचता है, यह तो तेरे मन की मन में ही रह गई। अब भी समय है, बंदे दर्पण को छोड़ अपने अंदर, अपनी अंतरात्मा से पूछ की तू चाहता क्या है? वह कर? और आत्मा सो परमात्मा उसमे दया धर्म का निवास है उसी के अनुसार चल। तो Kabir dohe meaning यह था आगे भी आपके समक्ष भावार्थ सहित कबीर के दोहे प्रस्तुत हैं और करते रहेंगे।

श्री हनुमान अष्टक लिरिक्स अर्थ सहित 

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